Madhu varma

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लेखनी कविता -जम और जमाई - काका हाथरसी

जम और जमाई / काका हाथरसी 


बड़ा भयंकर जीव है , इस जग में दामाद
 सास - ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद
 कर देता बरबाद , आप कुछ पियो न खाओ
 मेहनत करो , कमाओ , इसको देते जाओ
 कहॅं ‘ काका ' कविराय , सासरे पहुँची लाली
 भेजो प्रति त्यौहार , मिठाई भर- भर थाली

 लल्ला हो इनके यहाँ , देना पड़े दहेज
 लल्ली हो अपने यहाँ , तब भी कुछ तो भेज
 तब भी कुछ तो भेज , हमारे चाचा मरते
 रोने की एक्टिंग दिखा , कुछ लेकर टरते
‘ काका ' स्वर्ग प्रयाण करे , बिटिया की सासू
 चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू

 जीवन भर देते रहो , भरे न इनका पेट
 जब मिल जायें कुँवर जी , तभी करो कुछ भेंट
 तभी करो कुछ भेंट , जँवाई घर हो शादी
 भेजो लड्डू , कपड़े, बर्तन, सोना - चाँदी
 कहॅं ‘ काका ', हो अपने यहाँ विवाह किसी का
 तब भी इनको देउ , करो मस्तक पर टीका

 कितना भी दे दीजिये , तृप्त न हो यह शख़्श
 तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स ?
अथवा लैटर बक्स , मुसीबत गले लगा ली
 नित्य डालते रहो , किंतु ख़ाली का ख़ाली
 कहँ ‘ काका ' कवि , ससुर नर्क में सीधा जाता
 मृत्यु - समय यदि दर्शन दे जाये जमाता

 और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल
 आया हिंदू कोड बिल , इनको ही अनुकूल
 इनको ही अनुकूल , मार कानूनी घिस्सा
 छीन पिता की संपत्ति से , पुत्री का हिस्सा
‘ काका ' एक समान लगें , जम और जमाई
 फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई

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